शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

लोग तो बहुत आते हैं ज़िन्दगी में घम्खार बनकर

गुलिस्तान में एक नयी बहार बनकर

हर बहार में मगर कई  गुंचे नहीं खिलते

कहीं दिल नहीं मिलते और कहीं मुकद्दर नहीं मिलते 

शनिवार, 3 सितंबर 2011

आप जो यूं हमसे मिले



आप जो यूं हमसे मिले 



                                        आप के दीदार से

औरों  का तो हमने 

दीदार छोड़ दिया 


आप जो यूं हमसे मिले 


कोई और दिल में

बसर होता  तो कैसे 

सारा जूनून 

आप पर वार छोड़ दिया


आप जो यूं हमसे मिले 


सुरूर  और आता  भी  तो कैसे 

जब हुस्ने जाम की खुशबू छु गयी 

हमने  तो पीना हर  जाम छोड़  दिया


आप जो यूं हमसे मिले 


स्याह रातों से सिमट गए 

अंजन की तरह 

सुर्ख लबों को देख जब

आफ़ताब का दीदार छोड़ दिया


आप जो यूं हमसे मिले 


दीवाना कहा कर पुकारा 

जब आपने

दिवानगी  से भी हमने 

हर दूसरा मकाम छोड़ दिया


आप जो यूं हमसे मिले 


गर आप मिल जाएँ 

तो  मुकद्दर है

नहीं यही सुनेंगे की

खुदा के लिए संसार छोड़  दिया

शनिवार, 4 जून 2011

Jab Lagey

जब ज़िन्दगी उदास लगने लगे 
टूटती  जब हर  आस लगने लगे
लगे  के हर राह अब अँधेरी है
जब  रास्ते नज़र न आयें 
सपने जब सताने लगें 
जब अँधेरा नींद से  जगाने लगे
जब टिमटिमाते सितारे सताने लगें
जब आवाजें सताने लगें
यही पल अगली सुबह का पहला  पल  है
कुछ ही पलों में ज़िन्दगी फिर अंगडाई लेगी
कुछ ही पलों में रौशनी फिर बहलायेगी 
कुछ ही पलों में फिर सुबह आयेगी.

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

हसरत

दिल की हसरत जुबां पर आने लगी 
तुझे देख ज़िन्दगी  मुस्कुराने लगी 
वो तेरी मोहबत थी या मेरी दीवानगी
जो हर सूरत में तेरी सूरत नज़र आने लगी


दुआ गर मैं कोई मांगता खुदा से
तो शायद कुछ भी कबूल हो जाती
हाथ पसारने से पहले ही 
मन में तुम मुस्काने लगी 

दरगाह पर तो हम भी गए थे
सजदा करने को हुज़ूर के लिए  
तुम्हें देख के न जाने क्यों 
हल्की सी शर्म आने लगी 

नज़र उठी तो सामने तुम थे
नज़र झुकी तो तुम्हारा साया
नज़र फिरी तो तुम्हारी याद
रह रह कर तरसने लगी


दिल की हसरत जुबां पर आने लगी 
तुझे देख ज़िन्दगी  मुस्कुराने लगी

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं
तुम्हें देख सकते हैं 
मगर छूने का अहसास नहीं
तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं
माना के हर कतरे में
हो तुम एक समुन्दर की तरह
माना के हर कतरे में
हो तुम एक समुन्दर की तरह
पर समुन्दर से बुझती कभी
प्यास नहीं
तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं
दर्द की दीवारों से 
घिरा है अंजुमन
दर्द की दीवारों से 
घिरा है अंजुमन
तोड़ पाएं इन दीवारों को 
हमें आस नहीं
तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं
दिल कहाँ और 
नसीब कहाँ
दिल कहाँ और 
नसीब कहाँ 
कभी मिल पायेगा मुकद्दर
है अहसास नहीं 
तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं
नज़दीक गर न आ 
पाए कभी
नज़दीक गर न आ
पाए कभी
देख कर दूर से सजदा करें 
यही आभास सही
तुम बहुत करीब हो 
मगर पास नहीं

शनिवार, 20 नवंबर 2010

ये उनकी ख्वाहिश की  

हम पे तब्बजू भी ना दें

ये हमारा शौक की

हम उनका रास्ता रोक लें

इश्क है तो जुबां से कह दें

और नहीं तो

कदम हम पर रख कर चल दें

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

पञ्च तत्व

मुझे सीखना है 
बागों के उन गुलाबों की तरह महकना
सूरज मुखी की तरह मुस्काना 
खलिहानों की तरह हरियाली बिखेरना
वृक्षों की तरह छाँव देना 

मुझे सीखना है 
चिड़ियों की तरह मधुर वाणी में गाना 
पखेरू की तरह हवा की लहर सा उड़ जाना
हवा की तरह शीत लगर फैलाना
बादल की तहर मंडराना

मुझे सीखना है
सूरज की तरह तेज बिखराना
चंद्रमा की तरह अँधियारा को उज्जवल करना 
तारों की तरह टिमटिमाना
आकाश की तरह छा जाना

मुझे सीखना है
बूंदों की तरह चमकना 
झरनों की तरह रस बरसना 
नदिया की तरह बहे जाना
सागर की तरह गहरा होना

मुझे सीखना है 
बगीचों की तरह फल देना 
खेतों में बोये बीजों की तरह नव जीवन उगाना
जंगलों की तरह हरा भरा हो जाना
धरती की तरह अपनी गोद में सब को सुलाना

मुझे सीखना है 
दिशाओं की तरह रास्ता दिखाना
राहों की तरह मंजिल पे पहूंचना
शिखरों की तरह बुल्लंद होना
हिमनद की तरह शांत सोना

मुझे सीखना है 
तुम्हारे अस्तित्व से अपने अस्तित्व को उबरना
पञ्च तत्वों से जीवन को संवारना
अपने सत्य को पहचान पाना
जीवन के हर उपहार को सराहना

मुझे सीखना है 
हर उस मद से जो तुम्हारी रचना है
हर जीव, जयन्तु, 
हर जल, थल, पृथ्वी और आकाश से
हर तेज और हर प्रकाश से

ये ही हैं जीवन का सार
जो मेरे जीवन को जीव योग्य बना सकते हैं.
और मुझे पुन: तुम से मिला सकते हैं.